आ गये बागों-बहार से........
आ गये बागोें-बहार से
तन्हाई को छोेड़कर
मन को मोड़कर
भविष्य की उचाईयों से
जरा संभलकर चलना
कहीं छूट न जाये
वर्षों पाले हुए
बगीचे में पौधा
मन की अंगड़ाईयों को
बहला दो कि अभी बाकी है
बेपर्दा बुनियाद जवानी की
जिसमें कुछ जज्बें बाकी हैं
उधेड़बुन पड़ी जिंदगी
अभी तो लगता है कि
जैसे कल निकले हों
बाँस की कोपली से
बढ़ने की चाहत व तूफानी जज्ब़ा
कभी किसी का मोहताज नहीं होता
चाहें जितनी रूखसतें आएं जिंदगी में
अपना जख्म़ नहीं दिखाता
मन भी कुछ ओतप्रोत से दिखता है
गर्माहट बहुत है संसार में लेकिन
करें तो क्या करें नहीं बल्कि करना ही है
जीवन में खुशहाली व शुकूं के लिए
कोयल की कूक से ज्वाला सी जलती है
फिर भी मन को न मारिए
कुछ गरमाहट लाती है कभी-कभी
जिसका दीदार चाँद की शीतलता से भी ज्यादा होता है
चलने दो ज़रा-ज़रा अभी मकां बाकी है।
साभार........अनकहीं बातें
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