क्यूं गुस्सा इतना करती हो,
क्यूं हर बातों में अपनी ही बातें करती हो,
बतलाओं मुझे
एक दिन तुम्हें भी सोचना पड़ेगा
मिलने के लिए मुझसे
समय मांगकर बिना पूंछे नहीं।
क्यूं इतना बरख्श है तुम्हें सारी बातों में,
क्यूं इतना इठलाती है हर मुद्दे पर
तुम्हें पता नहीं है कि समय
किसी का मोहताज नहीं होता
कब तुम्हारे लिए कोई बया आ खड़ी हो,
और फिर दरवाजे न खुले अपनो के लिए
जरा समझो कि सच है ये जिंदगी की
कोई रूका नहीं तो तुम्हारी क्या औकात है।
साभार, धन्यवाद
क्यूं हर बातों में अपनी ही बातें करती हो,
बतलाओं मुझे
एक दिन तुम्हें भी सोचना पड़ेगा
मिलने के लिए मुझसे
समय मांगकर बिना पूंछे नहीं।
क्यूं इतना बरख्श है तुम्हें सारी बातों में,
क्यूं इतना इठलाती है हर मुद्दे पर
तुम्हें पता नहीं है कि समय
किसी का मोहताज नहीं होता
कब तुम्हारे लिए कोई बया आ खड़ी हो,
और फिर दरवाजे न खुले अपनो के लिए
जरा समझो कि सच है ये जिंदगी की
कोई रूका नहीं तो तुम्हारी क्या औकात है।
साभार, धन्यवाद
No comments:
Post a Comment